ख़ुशबू जी साधुवाद ज़िला जी को सुनवाने के लिये. देखिये मूल रूप से तो इनके घराने में सितार वादन की परम्परा रही है. गायकी की ओर ये क्यों आ गईं समझ में नहीं आता. विलायत ख़ाँ साहब महान सितार वादक थे.ये उन्हीं की बेटी हैं.आजकल सूफ़ी के नाम से काफ़ी चीज़ों को मार्केट किया जा रहा है.(हाँ सच कहूँ चीज़ ही ठीक रहेगा क्योंकि वह रूहानी ख़ुशबू अब हर जगह उपलब्ध नहीं जिसकी वजह से सूफ़ी रिवायत जानी जाती रही है)इनके घराने में सितार की आन रही है लेकिन बिला वजह ये लोग अपना वादन रोक कर गाने लगते हैं.इनके भाई शुजात हुसैन ने तो एक एलबम ही निकाल दिया है.(स्मरण रहे पं.रविशंकर ,निखिल बेनर्जी आदि ने कभी सार्वजनिक रूप से गाया नहीं) आप सुफ़ी म्युज़िक के पसेमज़र कभी मुज़फ़्फ़र अली का हुस्ने जानाँ एकबम सुनियेगा...क्या कमाल का शोध है और क्या कमाल की गायकी का शुमार है उसमें.ख़ैर अपनी अपनी बात कहने का अंदाज़ है सबका...और हर तरह का संगीत यूँ तो अच्छा ही होता है लेकिन बाक़यदा आप कोई प्रस्तुति लेकर आते हैं तो लोगों की अपेक्षा बढ़ जाती है.(ये बात मैने ज़िला आपा के लिये कही है)
If you dropped by on our blog page and have a song suggestion on the day's theme, please write. हमारे गीत-शीर्षक को देखकर आपके :आप संगीत प्रेमियों के ज़ेहन पर कौन सा गीत उभरता है ? यह जानने की उत्सुकता रहती है | कृपया अपने सुझाव अवश्य लिखें |
About This Blog
एक शीर्षक पर आधारित , एक शब्द से जुडे़ गीतों का कार्यक्रम है : हुस्न और इश्क़ । नाम और प्रोग्राम का वैसा ही संबंध है जैसा कि किसी प्राडक्ट और उसके नाम का होता है । एक नाम था, जिसे पर दो जुनूनी संगीत प्रेमियों ने दिया एक ढांचा और संवारा शीर्षक बद्ध गीतों की महफ़िल में जिसे सुननें के लिये आप समय निकालते हैं , गीत सुनते और चुनते हैं।
Our philosophy on playing Music
We have been playing music on the airwaves of northeast United States for a few years and believe that music and talk are two realms of dream and reality.Trying to interweave the two, we create the program Husnaurishq and play songs on a specific theme. At 12 noon eastern (on Wednesday,Thursday, Friday)you can listen to us live on am 1170 Brigewater,NJ and or www.ebcmusic.com ) Here you will find a sample from the day's theme.
1 comments:
ख़ुशबू जी
साधुवाद ज़िला जी को सुनवाने के लिये. देखिये मूल रूप से तो इनके घराने में सितार वादन की परम्परा रही है. गायकी की ओर ये क्यों आ गईं समझ में नहीं आता. विलायत ख़ाँ साहब महान सितार वादक थे.ये उन्हीं की बेटी हैं.आजकल सूफ़ी के नाम से काफ़ी चीज़ों को मार्केट किया जा रहा है.(हाँ सच कहूँ चीज़ ही ठीक रहेगा क्योंकि वह रूहानी ख़ुशबू अब हर जगह उपलब्ध नहीं जिसकी वजह से सूफ़ी रिवायत जानी जाती रही है)इनके घराने में सितार की आन रही है लेकिन बिला वजह ये लोग अपना वादन रोक कर गाने लगते हैं.इनके भाई शुजात हुसैन ने तो एक एलबम ही निकाल दिया है.(स्मरण रहे पं.रविशंकर ,निखिल बेनर्जी आदि ने कभी सार्वजनिक रूप से गाया नहीं)
आप सुफ़ी म्युज़िक के पसेमज़र कभी मुज़फ़्फ़र अली का हुस्ने जानाँ एकबम सुनियेगा...क्या कमाल का शोध है और क्या कमाल की गायकी का शुमार है उसमें.ख़ैर अपनी अपनी बात कहने का अंदाज़ है सबका...और हर तरह का संगीत यूँ तो अच्छा ही होता है लेकिन बाक़यदा आप कोई प्रस्तुति लेकर आते हैं तो लोगों की अपेक्षा बढ़ जाती है.(ये बात मैने ज़िला आपा के लिये कही है)
दुआओं के साथ.
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